प्रकृति के रंग Colors of Nature

प्रकृति के रंग Colors of Nature

वर्तमान पीढ़ी के ऊपर पर्यावरण को सुरक्षित करने एवं समृद्ध रखने की विशेष जिम्मेदारी है। ईश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी पर  इस कारण सृजन किया था जिससे उनके द्वारा रचित सृष्टि को विकसित एवं संरक्षित रहे; परंतु इसके विपरीत, मनुष्य ने अपने ऊपर ईश्वर द्वारा प्रदत्त दवित्व का निर्वहन न करके पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को असत-व्यस्त करता रहा है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण कोविड के दो वर्षों के लॉक-डाउन के समय दिखा है।  

अतः २१वीं सदी के प्राथमिक दशकों में ही इस विनाश को रोक कर वर्तमान पीढ़ी को इसके पुन:प्रवर्तन का प्रयास आरंभ करना अत्यावश्यक है… यदि इस कार्य में १०-१५ वर्ष की देरी हो गई तब आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन बहुत ही कठिन होगा। 

यह पुस्तक उन सभी युवा, वयस्क एवं वृद्धों  को अवश्य पढ़ना चाहिए जो प्रकृति को समझ कर पर्यावरण को सुरक्षित एवं समृद्ध करना चाहते हैं …

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Description

योगाहार, प्राकृतिक खेती, मृदा स्वास्थ, वैदिक कृषि सिद्धांत, कृषि पंचांग, प्रथा, परंपरा, ऋतु, पर्व इत्यादि की अनुभूति प्रकृति के रंग में समाहित है।

 

विशेष विवरण:

  • शीर्षक: प्रकृति के रंग Colors of Nature
  • सम्पादन एवं प्रकाशक: श्री पवन कुमार
  • पृष्ठ संख्या: ६६ पृष्ठ
  • प्रथम संस्करण 
  • द्विभाषीय: हिन्दी / English
  • प्रकाशन वर्ष: अगस्त २०२४
  • ISBN: 978-93-341-0420-2

 

जिल्द: पेपर बैक

डाक शुल्क: निःशुल्क

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